Sunday 15 May 2011

सुनयने

 बोध है मुझको तुम्हारे प्रेम का, फिर भी सुनयने
वेदना-पथ के पथिक का साथ कितना दे सकोगी?

वेदना के गीत गाकर
अश्रु-जल सरिता बहा कर
चाहता हूँ जग-विकल की पीर भर लूं इस ह्रदय में
धूल में जाऊं बिखर
और भी जाऊं निखर
यूँ किसी नन्हे का भोलापन समा लूं इस हृदय में
जिसके बचपन को कहीं
शहरों में ले जाकर श्रमिक
बंधुआ बनाया जा रहा हो
और यही बंधन नहीं है जो हमें घेरे हुए है
बंधनों का चक्रव्यूह है, किस तरह तुम लड़ सकोगी?

हर अधर पर आज पीड़ा
हर नयन में आज आंसू
हर ह्रदय में आज सिमटी हैं हजारों चिंतनाएँ
कुछ भी कह सकते नहीं
चुप भी रह सकते नहीं
इस तरह बांधे हुए मनु-वंशजों को वर्जनाएं
वर्जना के कंटकों को
साफ़ करते हाथ मेरे
रक्त से भीगे हुए हैं
रक्त से भीगे हुए कर-द्वय तो जाने कब रुकेंगे
इन के रुकने की प्रतीक्षा, तुम कहो, क्या कर सकोगी?

दृग-द्रवित से वारि-वृष्टि
आंचलों पर गिद्ध-दृष्टि
आज ममता लाज ढकने को अँधेरे ढूँढती है
साथ वाले घर की सीता
और परले घर की सलमा
राखियाँ थामे किसी भाई की बाहें ढूँढती है
वासनाओं के समय में
राखियों की बात करता
मैं बहुत पिछड़ा हुआ हूँ
और इस पिछड़े हुए के साथ चल पाओगी कैसे
मूल्य हैं बीते समय के, क्या इन्हें अपना सकोगी?

प्रेम की वेला नहीं है
ये तो प्रश्नों की घड़ी है
और इन्हीं प्रश्नों के उत्तर ढूँढने हैं मुझको पहले
उस समय तक रूक सको तो
गर प्रतीक्षा कर सको तो
मेरी आँखों में भी बसते हैं कई सपने रुपहले
वास्तविकता के धरातल
पर उतर के देखने से
है यदि इंकार तुमको
तो मुझको इनकार है इस प्रेम की संकल्पना से
गा नहीं सकता प्रणय का गीत मुझको भूल जाओ
कह नहीं सकता तुम्हें मन-मीत मुझको भूल जाओ


5 comments:

  1. :)
    बोध है मुझको तुम्हारे प्रेम का, फिर भी सुनयने
    वेदना-पथ के पथिक का साथ कितना दे सकोगी?...

    beautiful... !!!

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  2. Amazing Pushpendra..yes Bachchan ji came alive again, in your words and thoughts

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