Thursday 26 May 2011

मुझ से गर यूँ नजर मिलाओगे

सुना है तुम सफ़र पे निकले हो  
मुझको दरवाजे ताकने होंगे  


मुझ से गर यूँ नजर मिलाओगे 
रूह के दाग़ ढांपने  होंगे 


ख़्वाब आँखों में मेरी मत रक्खो  
मुझको ता-उम्र पालने होंगे


ख़ुद से पहले ही कुछ शिकायत है  
ये गिले भी सँभालने होंगे


हंस के तुम तो चले ही जाओगे 
मुझको आँसू बुहारने होंगें


रंज की रात कट चुकी कब की  
दुःख के दिन अब गुजारने होंगे


अगरचे हम ख़ुशी न बाँट सके 
ग़म तो आपस में बांटने होंगे


ज़िक्र आएगा ऐसे लमहों का 
जो हमें हंस के टालने होंगे


मैं बुरा हूँ मगर मेरे कुछ तो 
तुमको एहसान मानने होंगे


जिनको बहना था कश्तियों में हैं
हमको साहिल तलाशने होंगे


(26.05.11)







5 comments:

  1. Wow!..too good... keep writing ... maybe someday we will have our own Booker for you.. :) God bless!

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  2. Behtareen..........
    aap likhte rahe.n aur hum padhte rahe.n.....thanks for sharing!!!!!!!

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  3. ग़ज़ल आपकी सोच का आईना है.....बहुत खूब.

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