Tuesday 31 May 2011

वो तो चुप था कि रुस्वाइयाँ ना हों मेरी


चंद शेर 

वो तो चुप था कि रुस्वाइयाँ  ना हों  मेरी
मैं ये समझा कि नहीं कोई शिकायत बाकी 

करके बैठे हैं कब से वो मुहब्बत चुकता
देखना ये है कि शायद हो अदावत बाकी 
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बन के फिर दोस्त कोई आया है धोखा देने
मगर उसे भी कलेजे से लगाना होगा

मैं जानता हूँ इस बार भी देगा वो फ़रेब
मगर हसीन है धोखा तो फिर खाना होगा
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मैं उस से हाथ मिला लूंगा कोई बात नहीं
उस से कह दो ना इसे मेरी लगावट समझे

कोई दम बैठ के जो सांस भरी है मैंने
ना आहे-इश्क़, इसे मेरी थकावट समझे
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टूट कर भी वो झूठ नहीं बोलेगा
उसकी फ़ितरत है आईने की तरह

(31.05.11)

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