Thursday 19 May 2011

दीवारें

हम आंसूं भी नहीं हैं..

अगर होते  तो हमें सहेजने कोई तो दामन नज़र आता !

हम ओस भी नहीं बन पाए
कि बिखर जाते स्नेह की दूब पर 
और निशा शांत गुजर जाती...

हम तो अभिमन्यु की तरह,
जन्म से पहले ही मृत्यु के लिए अभिशप्त 
अनकही कथाओं के पात्र ,
अस्तित्व-विहीनता में जीवन की तलाश में हैं

लेकिन मार्ग कहाँ है इस चक्र-व्यूह में?

जहाँ उन शब्दों की दीवारें हैं, जो कभी बोले नहीं गए...

(15.09.92)

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