Wednesday 1 June 2011

तेरा आगाजे-मुहब्बत है, अभी मुमकिन है


जा मेरे दोस्त मेरे ग़म से  नारा कर ले
होगा बेहतर के कहीं दूर गुज़ारा कर ले


मैं तेरे साथ रहूँगा तो सुबहो-शाम यही
रंज और दुःख की कहानी के सिवा क्या होगा
कितने लम्हों ने मेरे साथ ख़ुशी देखी थी
उन्हें तो तू भी मेरे दोस्त जानता होगा


सिवाय उनके मेरे पास हसीं कुछ भी नहीं
तंज़ो-तकलीफ़, कशमकश की कमी कुछ भी नहीं
एक फेहरिश्त है झुलसे हुए अरमानों की
सिवाय अफसुर्दा उम्मीदों के कहीं कुछ भी नहीं


मैं अपनी जीस्त के काले घने अंधेरों में
शुमार तुझको करूँ, मुझसे हो ना पायेगा
क़दम-क़दम पे दरिया है मुश्किलातों का
ये जुल्म तुझपे मेरे दोस्त हो ना पायेगा


कैसे कह दूं के मेरे साथ चल, तेरी कमसिन
जवान उम्र, ये तकलीफ़ भला क्यूँ ढोये
ये आरिज़ों के कँवल, सुर्ख तबस्सुम तेरी
मेरे हालात की मुश्किल में भला क्यूँ खोये


तेरा आगाजे-मुहब्बत है, अभी मुमकिन है
थोडा मुश्किल तो है, एक बार गवारा कर ले
जा मेरे दोस्त मेरे ग़म से कनारा कर ले
होगा बेहतर के कहीं दूर गुज़ारा कर ले

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