Thursday 28 July 2011

आज भी ये रास्ता है



                   आज भी ये रास्ता है, और मैं हूँ

कल भी गुजरे थे मेरे मांदा कदम इस राह से
कल भी मैंने  ठोकरें दो-चार इस के नाम की
आज भी  बिखरे  हुए पत्तों  ने  पहचाना मुझे
चरचराती  ख़ामोशी मैंने सुनी फिर शाम की

आज भी डूबे हो जाने किन ख़यालों में, कहो
मुझसे ये पूछा किसी पत्ते ने फिर गिरते हुए
रास्ते  भर, रास्ते  से  आज  फिर  बातें हुई
रास्ता कहता रहा  और मैं फ़कत सुनते हुए

                  आज भी ये रास्ता है, और मैं हूँ
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मांदा - थके  
(28.07.11)

Friday 22 July 2011

कैसा दोस्त है! पल भर में बदल जाता है


मैं जब भी हाथ बढ़ाता हूँ, पलट जाता है
कैसा दोस्त है! पल भर में बदल जाता है

मैं हर पिछले गिले को दफ़्न करना चाहता हूँ
उसकी आँखों में नया तंज उभर आता है

ये दुनिया गहरी वादी और मैं बहती सी नदी
हंसीं मंजर दिखाई दे के बिछड़ जाता है

किसके आने का इंतज़ार भला है तुझको ?
भरी दोपहरी में क्यूँ राह झांक आता है

वो जब आता है, ख़ाली हाथ चला आता है
ज़माने भर की पर तकलीफ़ दिए जाता है

सब को मत दोस्त समझ, ख़ुद को ये फ़रेब न दे
पहले आवाज दे के देख, कौन आता है ?

वो जो हंसता है खुले दिल से हर महफ़िल में
जाने क्यूँ अपने घर इतना उदास आता है ?
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तंज - ताना

(21.07.2011)

Tuesday 19 July 2011

दरिया साहिल तलक नहीं आया


तेरे जाने के बाद चैन मिला
फिर यहाँ कोई भी नहीं आया

तूने जो देख कर नहीं देखा
फिर कोई देखने नहीं आया

उदास, उजड़े मकां-ए-दिल में
फिर कोई भी मकीं नहीं आया

कोई बीता हुआ पैगामे-वफ़ा
खो गया, मुझ तलक नहीं आया

काफ़िले मिहन के चले आये  
क्या हुआ, तू यहाँ नहीं आया

आया तो दूर से ही लौट गया
दरिया साहिल तलक नहीं आया

(19.07.2011)

Sunday 17 July 2011

ये आवारा सी नज़्में

बिना वजह
बे-वक़्त
गैर-इरादतन
बूँद-बूँद अंधेरों में
बिना बुलाये
कुछ नज़्में इस तरह उतर आती हैं ....

कुछ बीते लम्हे
कुछ पुरानी आवाजें
कोई पिछला दर्द
गुज़री हुई तक़लीफ़
वो नश्तर 
सब नजर आते हैं उनमें 

भटक रही हैं भीतर बहुत दिनों से मगर 
अब इनकी किसी को ज़रूरत नहीं है शायद 
ये आवारा सी नज़्में ......
इन्हें कहाँ रक्खूं?
क्या करूं इनका ?

Saturday 16 July 2011

कोई ग़म अब नया आये तो अच्छा भी लगे

कोई ग़म अब नया आये तो अच्छा भी लगे
ग़म-ए-दिल तुझसे नाता अब पुराना हो गया

पड़ेगा छोड़ना अब तो तुझे दामन मेरा
मेरे दिल में तुझे आये जमाना हो गया

गुजश्ता-वक़्त में तुझसे लगाया होगा दिल
मगर अब आम सा नजरें चुराना हो गया

मसलसल तिश्ना-लबी है के जबसे तू आया
बेकली को बड़ा मुश्किल छुपाना हो गया

तेरी मौजूदगी के  सब्त ना हो जाएँ निशां
कोई ग़म और का ये दिल ठिकाना हो गया

हरेक मौजे-नफस अब तो डुबाना चाहती है
बड़ा दुश्वार साहिल को बचाना हो गया
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गुजश्ता - बीते हुए 
मसलसल - लगातार 
तिश्ना-लबी - प्यास 
बेकली - बेचैनी 
मौजे-नफस - सांस की लहर 

(04-07-89)

Friday 15 July 2011

Mumbai Blast 13.07.2011

टूटी खिड़कियाँ कुछ दिनों में बदल दी जाएँगी..
लहू के दाग हमेशा न रहेंगे...
सड़क धो-पुंछ कर साफ़ हो जायेगी,
वैसे भी ये बारिशों के दिन हैं...

अभी कुछ दिन तक हवा में बारूद और मांस की बू रहेगी...
फिर समंदर की खुशनुमा बयार आएगी...

आपस में घालमेल हो चुके बदन के टुकड़ों का
सामूहिक चिताओं में हो चुका सेकुलर दाह-संस्कार
कुछ दिन नजर के सामने रहेगा...

कुछ दिन अस्पताल में घायलों के घावों से ..
टपकती मवाद की बूंदों में टीवी की खबरें लपलपायेंगी ...

आंसूं ब्रेकिंग न्यूज़ हैं...
कल किसी और के दिखाए जायंगे....

टीवी एंकरों की नकली सोज़ भरी आवाजें...
कल कोई नया मुद्दा उठाएंगी...

हमारे कर्णधारों को परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं.....
लोग नहीं मरेंगे को तो क्या उन्हें कोई देखेगा नहीं?
उनके चेहरे तो किसी न किसी बहाने टीवी पे आ ही जायेंगे...

और इसमें शर्मिंदा होने वाली क्या बात है....?

Tuesday 12 July 2011

कब आओगे ?



मेरी तकलीफ बसती है मेरी आँखों में 
और दिखती है 
जब बिजलियाँ कौंध जाएँ - बाहर 

मेरी आवाज यूँ तो रुंधी सी रहती है
मगर देती है जुबान तूफां को
कभी कभी

दिखती है चुभन
भरोसे की दरकती दीवारों में

आंसू हैं, ढलक उठते हैं

इस नज़्म के तहखाने में उम्मीदों का एक आसमान
दफ़न है  कबसे

जमीन उधडी पडी है
जज्बातों की तरह

अभी भी इंतज़ार है तुम्हें किस पल का?


कुछ हो भी नहीं कि अब मेरे ..?

(12.07.2011)

Tuesday 5 July 2011

हाँ, यही भूल मैं कर बैठा

किसी नयन से बहते आंसू पौंछ दिए हैं जब से मैंने
सच कहता हूँ उसी घड़ी से मैं जग में बदनाम हो गया

यह नहीं जगत की रीत किसी निर्बल का हाथ बँटाओ तुम
ऐसा न कभी भी हो सकता दुखियों की पीर घटाओ तुम
कर भृकुटि वक्र, तुमको जन-जन देगा ताने, यह याद रखो
क्या तुम को अधिकार किसी अबला के कष्ट मिटाओ तुम
हाँ, यही भूल मैं कर बैठा 
नयनों में आँसूं भर बैठा
सुख की बहती सरि छोड़ कहीं 
मैं दूर किनारे पर बैठा 
कहता हूँ हाय ह्रदय तेरी करुणा का क्या परिणाम हो गया

मैंने अंतस में भरी हुई करुणा के दीप जलाये थे
पथ सुगम किसी का हो जाये इसलिए फूल बिखराए थे
दुःख में डूबी मानवता को मिल जाये सहारा जीने का
यह सोच ह्रदय-तल पर मैंने नन्हे बिरवे उपजाए थे
था नहीं मुझे ये ज्ञात मगर
आशाओं का सिन्धु-प्रखर
भी भर न सकेगा यह मेरी 
रीती रह जाएगी गागर
जीवन-पट की स्वर्णिम आभा का वर्ण गहर कर श्याम हो गया

पर रोक सके पग-गति मेरी दुनिया के बस की बात नहीं
मैं अरे अमर-पथ का राही, क्या रुकूं हजारों घात सही
मैं तृषित-धरा पे नयन-नीर से सुख-वृष्टि करने वाला
मेरी दृष्टि में एक समान, जैसा दिन है, है रात वही
आओ तुम भी दो-चार कदम
है  नहीं  राह  कोई  दुर्गम
कर लो दृढ़-संकल्पित मन को
हो जाये सफलता का उदगम
अब तो दिन रात प्रहर आठों पथ पर बढना ही काम हो गया


(03.08.1989)

Friday 1 July 2011

शमीम अपने भी नाम की आयी.....

खड़ा हुआ है वो उस किनारे नदिया के
और इस किनारे मुझसे बात करता है
अपनी - अपनी हैं सालिम  कश्तियाँ लिए हर एक 
सुकूं  का आलम है 

जाने क्यूँ इक सवाल पूछ रहा है मुझसे
कि तुमने भी कभी जुर्रत हसीन की थी कभी -
और दरिया में पाँव डाले थे?

शायद भूल गया है कि मैं भी था एक दिन
उसी किनारे पे ठहरा हुआ, बहुत दिन तक  


आज मैं ख़ुद को इस किनारे अगर पाता हूँ
डूबा एक बार तो मैं भी जरूर होउंगा !
पाँव का भीगना क्या होता है?

लहर वो तेज थी, हल्की थी या नहीं थी कोई 
बीच दरिया की लहरों का नाम क्या लेना?
मायने सिर्फ किनारों में ढूंढें जाते हैं 

कोई पिछली नमी बाकी कहाँ तलक रहती  
पैरहन सूख चुका है कब का, 
नयी हवाओं के झोंके कभी रुके हैं भला ?


शमीम अपने भी नाम की आयी
और ठहरी है मेरे पास आके

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सालिम - सुरक्षित 
पैराहन - वस्त्र 
शमीम - बयार